मंगलवार, 26 मई 2009

राजनीती के खिलाडियों को धोबी पटका का झटका

१५ वी लोकसभा के चुनाव संपन्न हो चुके है. कांग्रेस के नेतृत्व में फिर से सरकार बनी. इस बार के चुनाव में एक बात साफ हो चुकी है की क्षेत्रीय दलों को केंद्रीय राजनीती से दूर रखने में अभी काफी समय लगेगा. माफ़िआओ को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. कुछ दलों ने अपनी खोल में से मुह बाहर निकाला और मंत्री बनने के लिए लार टपकाने लगे . कुछ ने तो बेशर्मी की हद ही पर कर दी और बिना मागे ही समर्थन देने के लिए सोनियाजी की चौखट पर माथा रगड़ने लगे. इन जैसो से पहले से खार खायी मैडम ने ठेंगा दिखा दिया. अब रास्ता भी क्या बचा, सो तथाकथित नेताओ ने सेकुलरिस्म की रक्षा के लिए बाहर से सरकार को समर्थन देंगे. हलाकि कांग्रेस को इसकी जरूरत नही पड़ेगी. पॉँच साल तक सत्ता का फायदा उठाने के बाद कोम्युनिस्तो ने कांग्रेस को गालिया देनी शुरू कर दी थी. मुलायम , लालू , पासवान , मायावती, पवार, का प्रधानमंत्री का सपना टूट गया. अब होड़ इस बात की लगी है की कौन सोनिया जी के ज्यादा करीब है. लेकिन राजनीती के खिलाडियों को पटकनी देते हुए मैडम ने किसी को घास तक नही डाली. गुस्साए नेताओं का हाल खिसियानी बिल्ली की तरह हो गया है.

रविवार, 8 मार्च 2009

गाँधी के सपनों का भारत

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में बहुत से वीरो ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को यह सोचकर आजाद कराया था कि आने वाली पीढी इस देश को विश्व गुरु पद तक अवश्य ले जायेगी।जेल के भीतर अमानवीय यातनाओ को झेलने वाले लाखो क्रांतिकारियों ने एक स्वप्न देखा था- स्वतंत्र व समर्थ भारत.किसी ने भी नही सोचा था, कि आज वे जिस भारत को स्वतंत्र कराने कि बात कर रहे है, कल का सूरज उगने के बाद से ही वह टुकडो में बंट जायेगा. जो हमारी साझी संस्कृति व विरासतों को संजोने कि बात कर रहे है, कल वे ही नदी के दो किनारों कि तरह कभी न मिलने का दंभ भरेंगे.ग्राम स्वराज, स्वरोजगार, अखंड भारत, छुआछुत विहीन समाज, एक देश एक विधान व एक निशान, औद्योगीकरण आदि अनेको ऐसे स्वप्न थे जो न केवल गांधीजी, बल्कि सरदार पटेल, सुभाष बोस, सावरकर, दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद, चंद्रशेखर, भगत सिंह जैसे अनेको स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्र भारत के भविष्य को सुदृढ़ और अखंड स्वरुप के निर्धारण के लिए देखे थे.आजादी कि सुगंध अभी पूरी तरह से मिल भी न पाई थी, कि भारत की एकता व अखंडता के स्वप्न टूट गए. टुकडो में मिली आजादी से भयंकर दुर्गन्ध उठाने लगी. जिन्हें हम कल तक अपना भाई समझते थे उन्होंने घर को बांटने में कोई कसार नही छोड़ी. विवशता की हद तक झुकने वाले नेतृत्व ने खुली आँखों से टूटते सपने का दृश्य देखा. सपने टूटने का यह क्रम आज भी जारी है. निस्संदेह १९४७ से २००८ तक भारत विकासशील से विकसित देशो की श्रेणी की ओर बढा है. किन्तु, आज गाँव, गरीब,गाय, किसान, खेत-खलिहान, चौपाल,शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, आदि सब उपेक्षित है. गांधीजी ने जिस ग्राम स्वराज की बात की थी वह आज घोर उपेक्षा का शिकार है. आजादी के बाद दो भूले भाई फिर मिलेंगे की उनकी इच्छा धूमिल हो चुकी है. हिन्दू-मुस्लिम को भारतमाता की दो आँखे बताने वाले गाँधी को शायद इसका आभास ही नही होगा कि एक आँख दिग्भ्रमित हो चुकी है. जातिवाद, भाषावाद, भ्रस्टाचार चरम पर है. गांधीजी ने जिस भारत की कल्पना की थी उनकी मौत के साथ ही रात के टूटे सपने की तरह वह समाप्त हो गया. क्या इस बात का प्रयास गाँधीवादी करेंगे कि गांधीजी के सपनो का भारत एक दिन संभव हो सके

अफ्रीका से बैरिस्टरी पढ़ने के बाद भारत लौटे मोहनदास करमचंद गाँधी का मन भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह गुलाम भारत की दुर्दशा देख कर तड़प उठा। १९१६ से भारतीय राजनितिक आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर गांधीजी ने एक कम और किया - भारतीय समाज का मानसिक अध्ययन. अंग्रेजो के जुल्मो के विरुद्ध क्रांतिकारियों ने फांसी के फंदे तक को सहर्ष स्वीकार किया. सनातनी परम्परा के संवाहक गांधीजी ने विरोध का नया मार्ग निकला- अहिंसक विरोध, असहयोग. जिसका जनता पर बड़ा असर पड़ा.गांधीजी के सभी आंदोलनों में भारी भीड़ उमड़ पड़ती थी.गांधीजी ने समाज का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था. छुआछुत, उंच नीच, जातिवाद, नशाखोरी जैसी सामाजिक बुराइयों को जड़ से समाप्त करने की बात उन्होंने अपने भाषादो में कई कही. स्वयं के जीवन में भी इसका उदहारण प्रस्तुत भी किया.

गांधीजी आजादी के बाद के भारत की रुपरेखा मन में संजोते रहे। स्वावलंबन, स्वदेशी, ग्राम स्वराज, शिक्षा, संस्कृति, कृषि और कानून को भारतीय परिप्रेक्ष्य में लागू करने की लडाई वे अपने अंतिम समय तक लड़ी. विदेशी वस्त्रो की होली जलाने और खादी पहनने का उनका आग्रह लोगो में स्वाभिमान और स्वावलंबन की भावना का बीजारोपण ही था. गाँव मजबूत होंगे तो देश मजबूत होगा, ऐसा उनका चिंतन था. प्रार्थना सभा में - रघुपति राघव राजा राम ......, भजन गाना गांधीजी द्वारा लोगो को धर्म, समाज, संस्कृति, के साथ समरस करने का अनूठा प्रयास था. अज भी लोग रामधुन गाते है. साबरमती आश्रम की स्थापना के पीछे गांधीजी का स्पष्ट मंतव्य था कि आम आदमी भी देश के बारे में सोचे. जब गाँव से आजादी कि बयार उठेगी तभी परिवर्तन आएगा. आजादी का मतलब केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नही होती, बल्कि, आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक, धार्मिक सभी

गांधीजी विभाजन के विरोध में थे. एक बार उन्होंने कहा था - विभाजन उनकी लाश पर होगा. किन्तु, थक चुके लोगो ने भारत की आजादी की आस ही छोड़ दी थी, वह किसी भी कीमत पर आजादी लेने के लिए गाँधी की उपेक्षा करने लगा. यह गांधीजी के उन विचारो की हत्या थी जो गोडसे की गोली से कही ज्यादा असर कारक रही.

मंगलवार, 22 अप्रैल 2008

भारतीय स्वतंत्रता के १५० वर्ष

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के १५० वर्ष पूरे हो गए है आज की पीढ़ी को स्वतंत्रता के महत्व को समझना होगा भारतीय संस्कृति के प्रति मन में आदर का भाव प्रकट हो ऐसा वातावरण निर्माण करना होगा इतिहास हमारा आइना होता है हम अपने रोज के कामो में से थोडा सा समय निकाल कर देश के लिए कुछ सकारात्मक कार्य अवश्य करे ऐसा संकल्प लेकर हम आज़ादी के महत्व को समझ सकेगे